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Friday, October 19, 2012

Solah somvaar (श्रावण सोमवार की कथा )


श्रावसोमवाकथा के अनुसार अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सबकुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था।

दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा।
पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था।

उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- 'हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।'

Thursday, October 18, 2012

vijaydasmi history


दशहरा को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार वर्षा ऋतु के अंत में संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। नवरात्र में मूर्ति पूजा में पश्चिम बंगाल का कोई सानी नहीं है जबकि गुजरात में खेला जाने वाला डांडिया बेजोड़ है। पूरे दस दिनों तक त्योहार की धूम रहती है।

लोग भक्ति में रमे रहते हैं। मां दुर्गा की विशेष आराधनाएं देखने को मिलती हैं।

दशमी के दिन त्योहार की समाप्ति होती है। इस दिन को विजयादशमी कहते हैं। बुराई पर अच्छाई के प्रतीक रावण का पुतला इस दिन समूचे देश में जलाया जाता है।

Tuesday, October 16, 2012

9 Devi's Description full

नवरात्र : 9 दिन, 9 देवी
नवरात्र
के 9 दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं। ये
देवियां भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर उनकी कामनाएं पूर्ण करती हैं।

(1) शैलपुत्री:


पहले स्वरूप में मां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में
विराजमान हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार 'शैलपुत्री' के दाहिने हाथ में
त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के
कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक
माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के
मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके।
उपासना मंत्र : वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

Sunday, October 7, 2012

Happy Navratra



9 devi's description



Maa Shailputri is the daughter of Himalaya and first among the nine aspects of Maa Durga. Mounting on a bull, Maa Shailputri holds a trishul in the right hand and a flower in the left hand.

Maa Brahmacharini is the second form of Navdurga and is worshipped on the second day of Navratri. Maa Brahmacharini practices Tapa and is very gorgeous giving the message of love to the whole world. She holds a rosary (mala) in her right hand and Kamandal in left hand.

This form of Navdurga is known as Chandraghanta because there is a half-circular moon in her forehead. This face of Maa Durga is very charming and bright. She possesses three eyes and ten hands holding ten different types of swords, weapons and arrows etc and mounts on a Lion.

हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार दीपावली की पूर्ण कथा ( कहानी )

                    
                                दीपावली                                   


असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक तथा अंधेरों पर उजालों की छटा बिखेरने वाली हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पूरे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है. दीपावली त्यौहार हिन्दुओं के अलावा सिख, बौध तथा जैन धर्म के लोगों द्वारा भी हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है. यूं तो इस महापर्व के पीछे सभी धर्मों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ में वर्णित कथाओं के अनुसार दीपावली का यह पावन त्यौहार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के बाद बनवास के बाद अपने राज्य में वापस लौटने की स्मृति में मनाया जाता है. इस प्रकाशोत्सव को सत्य की जीत व आध्यात्मिक अज्ञानता को दूर करने का प्रतीक भी माना जाता है.
परम्पराओं का त्यौहार दीपावली में मां लक्ष्मी व गणेश के साथ मां सरस्वती की पूजा भी की जाती है. चूंकि गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है, इसलिए लक्ष्मी के साथ विघ्नहर्ता का पूजन भी किया जाता है और धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है, इसलिए ज्ञान की देवी मां सरस्वती की भी पूजा होती है. इस दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व होता है, इसलिए भक्तों को चाहिए कि वह दो थालों में 6 चौमुखे दीपक को रखें और फिर उन थालों को 26 छोटे-छोटे दीपक से सजाएं.
ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता और वह सदा ही अन्न, धन, धान्य व वैभव से संपन्न रहता है. दीपावली का पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का सन्देश फैलता है.



(1) दीवाली - रामचंद्र का बनवास काटकर अयोध्या लौटना  


रामायण के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजकुमार राम अपने पिता दशरथ की आज्ञा से 14वर्ष का वनवास काटकर तथा लंकानरेश रावण का वध कर पत्नी सीताअनुज लक्ष्मण तथा भक्त हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा उठी। उसी समय से दीवाली पर दीये जलाकरपटाखे बजाकर तथा मिठाई बांटकर दीवाली का पर्व मनाने की परम्परा आरंभ हुई।




(2)    दीवाली - राजा बलि की कथा

पुरातन युग में दैत्यों के राजा बलि ने अपने जीवन में दान देने का वचन लिया था। कोई याचक उससे जो वस्तु माँगता राजा उसे वह वस्तु देता था। उसके राज्य में जीव-हिंसा, मद्यपान,  वेश्यागमन, चोरी और विश्वासघात उन पाँच महापातकों का अभाव था।
चहुँओर दया, दान अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य का बोलबाला था। आलस्य, मलिनता, रोग और निर्धनता उसके राज्य से कोसों दूर थीं। लोग पारस्परिक स्नेह के साथ रहते थे। द्वेष और असूया को रोकने का भरसक प्रयास किया जाता था। अतः इतने अच्छे राज्य का रक्षण करने के लिए भगवान विष्णु ने भी राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार कर लिया था। उन्होंने राजा की धर्मनिष्ठा स्मृति को बनाए रखने के लिए तीन दिन अहोरात्रि महोत्सव का निश्चय किया था। यही महोत्सव आज दीपमालिका के नाम से प्रसिद्ध है।


(3)  दीवाली - लक्ष्मी गणेश पूजन
वैसे तो प्राय: लक्ष्मी पूजन के साथ विष्णु की पूजा होती है लेकिन दीवाली को लक्ष्मी और गणेश की पूजा का विधान है। इस विशेष पूजन का क्या कारण है? इस बारे में एक कथा प्रचलित है।
एक बार एक राजा ने प्रसन्न होकर एक लकड़हारे को एक चंदन का वन (चंदन की लकड़ी का जंगल) उपहार स्वरूप दिया। 
लकड़हारा ठहरा साधारण मनुष्य! वह चंदन की महत्ता और मूल्य से अनभिज्ञ था।  वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर भोजन बनाने के लिये प्रयोग करने लगा।
राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो उसकी समझ में आया कि संसाधन का उपयोग करने हेतु भी बुद्धि (ज्ञान) व ज्ञान आवश्यक है। 
यही कारण है कि लक्ष्मी जी (धन की प्रतीक देवी) और श्री गणेश जी (ज्ञान के प्रतीक देव) की एक साथ पूजा की जाती है ताकि व्यक्ति को धन के साथ साथ उसे प्रयोग करने की ज्ञान भी प्राप्त हो। 

(4) दीवाली - देवी लक्ष्मी कथा 
एक अन्य लोक कथा के अनुसार देवी लक्ष्मी इस रात अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। मान्यता है कि जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता हो, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है।
एक और बात ध्यान देने योग्य है कि देवी सीता जो लक्ष्मी की अवतार मानी जाती हैं, वह भी भगवान श्री राम के साथ इसी दिन बनवास से लौट कर आई थी इसलिए भी इस दिन घर की साफ सफाई करके देवी लक्ष्मी का स्वागत व पूजन किया जाता है। 

(5) दीवाली - साधु की कथा 

क बार एक साधु को राजसी सुख भोगने की इच्छा हुई। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने लक्ष्मी की कठोर तपस्या की। कठोर तपस्या के फलस्वरूप लक्ष्मी ने उस साधु को राज सुख भोगने का वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त कर साधु राजा के दरबार में पहुंचा और राजा के पास जाकर राजा का राज मुकुट नीचे गिरा दिया। यह देख राजा क्रोध से कांपने लगा। किन्तु उसी क्षण उस राजमुकुट से एक सर्प निकल कर बाहर चला गया। यह देखकर राजा का क्रोध समाप्त हो गया और प्रसन्नता से उसने साधु को अपना मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा।
साधु ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वह मंत्री बना दिया गया। कुछ दिन बाद उस साधु ने राजमहल में जाकर सबको बाहर निकल जान का आदेश दिया। चूंकि सभी लोग उस साधु के के चमत्कार को देख चुके थे, अत: उसके कहने पर सभी लोग राजमहल से बाहर आ गए तो राजमहल स्वत: गिरकर ध्वस्त हो गया। इस घटना के बाद तो सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था का कार्य उस साधु द्वारा होने लगा। अपने बढ़ते प्रभाव को देखकर साधु को अभिमान हो गया और वह अपने को सर्वेसर्वा समझने लगा। अपने अभिमानवश एक दिन साधु ने राजमहल के सामने स्थित गणेश की मूर्ति को वहां से हटवा दिया, क्योंकि उसकी दृष्टि में यह मूर्ति  राजमहल के सौदर्य को बिगाड़ रही थी। अभिमानवश एक दिन साधु ने राजा से कहा कि उसके कुर्ते में सांप है अत: वह कुर्ता उतार दें। राजा ने पूर्व घटनाओं के आधार पर भरे दरबार में अपना कुर्ता उतार दिया किन्तु उसमें से सांप नहीं निकला। फलस्वरूप राजा बहुत नाराज हुआ और उसने साधु को मंत्री पद से हटाकर जेल में डाल दिया। इस घटना से साधु बहुत दुखी हुआ और उसने पुन: लक्ष्मी की तपस्या की।
लक्ष्मी ने साधु को स्वप्न में बताया कि उसने गणेश की मूर्ति को हटाकर गणेश को नाराज कर दिया है। इसलिए उस पर यह विपत्ति आई है क्योंकि गणेश के नाराज होने से उसकी बुद्धि नष्ट हो गई तथा धन या लक्ष्मी के लिए बुद्धि आवश्यक है, अत: जब तुम्हारे पास बुद्धि नहीं रही तो लक्ष्मीजी भी  चली गई। जब साधु ने स्वप्न में यह बात जानी तो उसे अपने किए पर बहुत पश्चाताप हुआ।
साधु को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने पश्चाताप किया तो अगले ही दिन राजा ने भी स्वत: जेल में जाकर साधु से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और उसे जेल से मुक्त कर पुन: मंत्री बना दिया।
मंत्री बनने पर साधु ने पुन: गणेश की मूर्ति को पूर्ववत स्थापित करवाया, साथ ही साथ लक्ष्मी की भी मूर्ति स्थापित की और सर्व साधारण को यह बताया कि सुखपूर्वक रहने के लिए ज्ञान एवं समृद्धि दोनों जरूरी हैं। इसलिए लक्ष्मी एवं गणेश दोनों का पूजन एक साथ करना चाहिए। तभी से लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन की परम्परा आरम्भ हो गई।

Karva cauth vrat katha (करवा चौथ का व्रत)

महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी. एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा. रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा. इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है. चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही आज मैं भोजन करूंगी. अपनी बहन के उत्तर को सुनकर साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां अग्नि जला दी. फिर वापस घर आकर उन्होंने छलनी से प्रकाश दिखलाते हुए अपनी बहन से बोले- देखो बहन, चांद निकल आया है. अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो. साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो. ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं.
 

Gayatri mantra

सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र


हिन्दू समाज गायत्री मंत्र को ईश्वर की आराधना के लिए सबसे बड़ा मंत्र मानता है जो इस प्रकार है- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् । (भावानुवाद) ओम् ईश अनादि अनंत हरे । जीवन का आधार स्वयंभू सबमें प्राण भरे । जिसका ध्यान दुखों को हरता दुख से स्वयं परे । विविध रूप जग में व्यापक प्रभु धारण सकल करे । जो उत्पन्न जगत को करके सब ऐश्वर्य भरे । शुद्ध स्वरूप ब्रह्म अविनाशी का मन वरण करे । दिव्य गुणों से आपूरित जो सुख का सृजन करे । वह जगदीश्वर बुद्धि हमारी प्रेरित सुपथ करे ।

Ravivaar vrat katha

रविवार व्रतकथा


सभी मनोकामनाएं पूर्ण करनेवाले और जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा हेतु सर्वश्रेष्ठ व्रत रविवार की कथा इस प्रकार से है- प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी. वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती. रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती. सूर्य भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था. धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था.

उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी. बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी. अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी. पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया. रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी. आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया. सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई.

What a Hindu Dharm


हिन्दू धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित किया गया नहीं है। यह पुराने समय से चले आ रहे अलग-अलग मतों और आस्थाओं से मिलकर बना है। समय के साथ-साथ इस धर्म में ऐसे नए विश्वास और मत जुड़ते गए, जो समय की कसौटी पर खरे थे। इसलिए ही हिन्दू धर्म को एक विकासशील धर्म कहा जाता है। हिन्दू धर्म के मूल तत्वों में सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा और दान मुख्य हैं और इन सबका विशेष महत्त्व है। इसलिए अपने मन, वचन और कर्म से हिंसा से दूर रहने वाले मनुष्य को हिन्दू कहा गया है। हिन्दू धर्म का इतिहास वेदकाल से भी पहले का माना गया है और वेदों की रचना 4500 ई।पू। शुरू हुई। हिन्दू इतिहास ग्रंथ महाभारत और पुराणों में मनु (जिसे धरती का पहला मानव कहा गया है) का उल्लेख किया गया है। पुराणों के अनुसार हिन्दू धर्म सृष्टि के साथ ही पैदा हुआ। पुराना और विशाल होने के चलते इसे ‘सनातन धर्म’ के नाम से भी जाना जाता है।

श्री गणेशाय नमः

Gajanand maraj
 

Ganpati bapa
 

 

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